भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला, जो Axiom-4 मिशन के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में 18 दिन बिता चुके हैं, आज दोपहर स्पेसएक्स के ड्रैगन कैप्सूल के ज़रिए धरती पर लौट रहे हैं। लेकिन वे अकेले नहीं लौट रहे — वे अपने साथ अंतरिक्ष से एक वैज्ञानिक 'खजाना' भी ला रहे हैं, जो भारत के वैज्ञानिक और अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए मील का पत्थर माना जा रहा है।
🚀 कब और कैसे हो रही वापसी?
शुभांशु शुक्ला 14 जुलाई को शाम लगभग 4:35 बजे (भारतीय समयानुसार) अंतरिक्ष स्टेशन से ड्रैगन कैप्सूल के ज़रिए रवाना हुए थे। अनुमान है कि उनकी वापसी आज, 15 जुलाई को दोपहर लगभग 3 बजे, प्रशांत महासागर में एक स्प्लैशडाउन लैंडिंग के जरिए होगी। मिशन के इस चरण को NASA, Axiom Space और SpaceX की टीमें मिलकर संभाल रही हैं।
🧪 वैज्ञानिक 'खजाना' क्या है?
शुभांशु ISS से अपने साथ करीब 263 किलो का वैज्ञानिक उपकरण और सैंपल्स ला रहे हैं। इसमें शामिल हैं:
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हड्डियों पर माइक्रोग्रैविटी का प्रभाव (Osteoporosis से जुड़ा प्रयोग)
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स्पेस एल्गी (micro-algae) पर रिसर्च, जो अंतरिक्ष में ऑक्सीजन, फूड और फ्यूल उत्पादन के लिए अहम है
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मेथी और मूंग के बीजों का अंकुरण — अंतरिक्ष में भारतीय खाद्यान्नों के विकास की संभावनाओं पर अध्ययन
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वॉटर बेयर्स (टार्डिग्रेड्स) जैसे सूक्ष्म जीवों पर स्पेस एन्वायरनमेंट का असर
इन रिसर्चों का उपयोग न सिर्फ भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों में होगा, बल्कि ISRO के आने वाले Gaganyaan मिशन के लिए भी अहम डेटा प्रदान करेगा।
🏠 लखनऊ में इंतज़ार कर रहा है परिवार
लखनऊ स्थित शुभांशु शुक्ला का परिवार—पिता शंभु दयाल शुक्ला, माता आशा शुक्ला और बहन शुचि मिश्रा—इस ऐतिहासिक क्षण के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहा है। परिवार ने श्रावण मास के पहले सोमवार को भगवान शिव की रुद्राभिषेक पूजा कर उनके सुरक्षित लौटने की प्रार्थना की।
🏫 देशभर में उत्सव का माहौल
देश के कई वैज्ञानिक संस्थान और स्कूल, शुभांशु की वापसी को लाइव स्ट्रीम कर रहे हैं। कोलकाता के बिड़ला इंडस्ट्रियल एंड टेक्नोलॉजिकल म्यूज़ियम ने विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया है जिसमें बच्चों के लिए अंतरिक्ष क्विज़ और मॉडल रॉकेट प्रदर्शन भी शामिल हैं। लखनऊ के सिटी मॉन्टेसरी स्कूल (CMS) ने भी छात्रों के लिए इस ऐतिहासिक क्षण को लाइव दिखाने की व्यवस्था की है।
🇮🇳 भारत की अंतरिक्ष उड़ानों में दूसरा नाम
शुभांशु शुक्ला भारत के दूसरे अंतरिक्ष यात्री हैं। उनसे पहले 1984 में राकेश शर्मा ने रूस के Salyut-7 स्टेशन में उड़ान भरी थी। यह मिशन भले ही अमेरिका और निजी संस्था Axiom Space के साथ हुआ हो, लेकिन भारत के वैज्ञानिक इतिहास में यह एक बड़ा अध्याय जोड़ता है।
अंतरिक्ष यात्री | मिशन | वर्ष | यान |
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राकेश शर्मा | Soyuz T-11 (USSR) | 1984 | Salyut-7 |
शुभांशु शुक्ला | Axiom-4 (NASA+SpaceX) | 2025 | ISS + Dragon Capsule |
🛰️ कितना खर्च हुआ?
भारत सरकार और सहयोगी एजेंसियों ने इस मिशन में लगभग 550 करोड़ रुपये का निवेश किया है। ये राशि Gaganyaan जैसे स्वदेशी मानव मिशनों की तैयारी में मदद करेगी। इस मिशन से मिले अनुभव, तकनीक और डेटा भविष्य के भारतीय अंतरिक्ष मिशनों को सशक्त बनाएंगे।
🔭 आगे क्या?
अब जब शुभांशु शुक्ला धरती पर लौट रहे हैं, उनके अनुभव और रिसर्च भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में नई दिशा प्रदान करेंगे। ISRO का लक्ष्य है कि 2027 तक Gaganyaan के जरिए पूरी तरह स्वदेशी मानव मिशन को अंतरिक्ष में भेजा जाए।
✨ निष्कर्ष
शुभांशु शुक्ला की यह यात्रा सिर्फ एक अंतरिक्ष यात्रा नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय गौरव और वैज्ञानिक उन्नति की मिसाल है। जब वे धरती पर लौटेंगे, तो उनके साथ लौटेगा वह अनुभव और शोध, जो भारत को अगले दशक में अंतरिक्ष अन्वेषण की अग्रिम पंक्ति में खड़ा करेगा।
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